Friday, August 14, 2009

अब रिमोट से भी फहरेगा राष्ट्रध्वज

दिल्ली के पास ही ग्रेटर नोएडा से जुडा हुआ एक छोटा सा कस्बा है दनकौर जहां दिल्ली से महज दो घंटे और ग्रेटर नोएडा से जुड़े होने के बावजूद विकास की रोशनी अब तक नहीं पहुंची है। किसी ने ठीक ही कहा है कि अंधेरे की कोख से ही रोशनी का जन्म होता है, ऐसा ही कुछ इस कस्बे दनकौर में हुआ है। यहां के निवासी सगीर खान जायसवाल ने अपने बूते ही नेशनल फ्लैग होस्टिंग रिमोट डिवाइस इजात की है। इस डिवाइस से राष्ट्रध्वज एक रिमोट बटन दबाते ही अपने आप होस्टिंग के लिए ऊपर चला जाता है और इसकी खास बात तो यह है कि होस्टिंग के समय राष्ट्रध्वज पर पुष्पवर्षा भी होती है।

सगीर खान इससे पहले कार फायर कंट्रोल सिस्टम और टॉयलेट गैस एक्जहॉस्टर जैसी खोजें कर चुके हैं। उनकी यह खोजें तब और बड़ी हो जाती हैं जब वह बताते हैं कि वह सिर्फ दसवीं पास हैं और साइकिल, कार, मोटरसाइकिल और कंप्यूटर आदि ठीक करके अपनी आजीविका चलाते हैं। सगीर खान ने 2004 में अपनी पहली खोज टॉयलेट गैस एक्जहॉस्टर के साथ ही अपने नाम के साथ अविष्कारक लगाना शुरू कर दिया था।

सगीर ने अपने इस नेशनल फ्लैग होस्टिंग रिमोट डिवाइस को राज्य के अधिकारियों के अलावा राष्ट्रपति कार्यालय को भी दिखाया है। अधिकारियों से बातचीत करने के बाद पिछले साल अपने इस अविष्कार को लेकर वह ट्रेडफेयर प्रगति मैदान जा पहुंचे और उन्होंने उत्तर प्रदेश पैवेलियन में अपने इस डिवाइस को लगाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन यहां पर उन्हें प्रताड़ित किया गया। इस काम में उन्हें तीन दिन का समय लग गया और इस दौरान उन्होंने दरियागंज थाने में रिपरेट दर्ज कराई और प्रगति मैदान के बाहर गाड़ी में तीन दिन का समय गुजारा।

अपने साथ इस तरह के व्यवहार के बाद उन्होंने अधिकारियों से कहा कि आप मुख्यमंत्री की इतनी बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगा सकते हैं लेकिन आपके पास राष्ट्रध्वज के लिए जगह नहीं है? इसी से विक्षुब्ध सगीर कहते हैं कि खोज करना जितना कठिन है उससे भी ज्यादा अधिकारियों को इसके प्रदर्शन के लिए मनाना है।


सगीर खान ने अपनी इस खोज के संबंध में दिगपाल सिंह से बातचीत की। बातचीत के कुछ अंश:- 

आपको इस तरह के अविष्कार की प्रेरणा कहां से मिली
बचपन में देखता था कि जब भी कोई राष्ट्रध्वज फहराता था तो ध्वज पर से फूल गिरकर ध्वज फहराने वाले का सम्मान करते थे लेकिन इस पूरी प्रोसेस में ध्वज के सम्मान में ज्यादा कुछ नहीं होता था। बचपन में भी मेरे दिमांग में ये चीज उठती थी लेकिन बड़ों के डर से किसी से नहीं बोल पाता था। तभी मैंने सोचा था कि ध्वज के सम्मान के लिए कुछ काम करुंगा।

राष्ट्रध्वज के साथ काम करते हुए क्या कभी अनदेखा डर भी लगा?
राष्ट्रध्वज के साथ कोई भी काम करते हुए डर तो लगता है लेकिन मुझे यकीन था कि मैं राष्ट्रध्वज के सम्मान के लिए काम कर रहा हूं।

एक मुस्लिम होते हुए यह सारा काम कितना मुश्किल था?
मेरे सामने इस तरह से कोई मुश्किल नहीं आई। यह मेरा देश है और मैं अपने देश के राष्ट्रध्वज के सम्मान के लिए काम कर रहा हूं। 

आपने अपनी इस डिवाइस का पेटेंट भी आपने कराया है?
हां मैंने अपने इस यंत्र का पेटेंट भी कराया है जिससे इसका इस्तेमाल सिर्फ राष्ट्रध्वज के लिए ही किया जा सके। अगर कोई पार्टी इसे अपने झंडे या किसी अन्य चीज पर इस्तेमाल करे तो उस पर पेटेंट एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। पेटेंट का दूसरा फायदा यह भी है कि कोई मेरे इस अविष्कार को चुरा भी नहीं सकता।

आपने इतना सब कुछ किया है जबकि आप सिर्फ 10 वीं पास हैं? इस तरह के अविष्कारों के लिए पढ़ाई कितना महत्व है?
ऐसा तो नहीं है कि पढ़ाई का महत्व नहीं है, पढ़ाई से हमें दूसरों के विचार जानने को मिलते हैं। एक दिन एक कैंटीन पर में चाय पी रहा था तो एक अखबार के टुकड़े में मुझे बिस्कुट दिए गए जिसे मैं ऐसे ही पढ़ने लगा तो उसमें डा़ एपीजे अब्दुल कलाम की एक लाइन पढ़ी जिसमें लिखा था कि ‘‘प्रयोगात्मक तरीके से बनते हैं वैज्ञानिक’’ उस लाइन को मैंने अपनी जिन्दगी में उतार लिया।

सुना है आप पूर्व राष्ट्रपति डा़ एपीजे अब्दुल कलाम को अपना गुरू भी मानते हैं?

जी हां मैंने डॉ कलाम को अपना गुरू माना है। दनकौर गुरू द्रोणाचार्य की भूमि है यहीं पर एकलव्य ने द्रोणाचार्य को संकेत रूप में अपना गुरू मानकर उनसे शिक्षा ली थी। एकलव्य की तरह ही मैं भी अपने गुरू जी डॉ कलाम की तस्वीर को सामने रखकर अपने सभी परीक्षण करता हूं।

डॉ कलाम के लिए आपने अपने घर में एक खास जगह बना रखी है?
जब मैं गुरू जी की तस्वीर लेकर आया तो मुझे अपने घर में उनके जैसे महान के व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं मिली। मेरे घर में भारत का एक नक्शा था लेकिन मैंने उन्हें भारत से भी ज्यादा कद का सम्मान देना चाहा तो एक दिन में दिल्ली से विश्व का नक्शा ले आया और उसके उपर उनकी तस्वीर को लगा दिया।

1 comment: